Friday, February 17, 2012

zindagi

पत्तियाँ हिलती थी ,फिर खामोशी उनपर अपना हक़ जताती थी
होली के रंग में साने हुए खुद को सतरंगी बोलते थे
पानी की हर बूँद रंग को फीका कर जाती थी
मैं खामोश हस्ता था ज़िंदगी के इस मुशायरे में
पल थम जाए करते , मैं फिर भी हस्ता रहता
आँधी ने सब कुछ बिखेर दिया, मैं बोला देखते है
जब तक तेरी खूशबू भी है मेरे साथ फ़िक्र किसको है
कलाम की स्याही सूख सी गयी है,लिखने का मॅन कर रहा है
कसिश की स्याही मिल गयी मैने अफ़साना लिख डाला
फिर क्या था सुंदरता का परिणय था हर दृश्या
झरोखे से काग़ज़ हटा कर रोशनी आने दी मैने
और फिर हास पड़ा ज़िंदगी के उस शेर पर

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