Friday, December 31, 2010

jeevan ek vyang

बंद खिड़की और दूर इक झील
कोसिश,उसकी गहराई नापने की
हस रहा हून अपनी कल्पना और असमर्थता पर
बाँध रहा हून मुट्ठी में रेत
हर तिनके को कोसिश पकड़ने की
हसी आ रही है खुद की जिद पर
अमावस की घनघोर काली रात
कोसिश,रौशनी की एक किरण से अंधेरा मिटाने की
हस रहा हून अपनी अनंत इक्षाओं पर
गगनचूम्बी इमारत की छत
कोसिश,आसमान को छूने की
हस रहा हून अपनी बेकार हुई मेहनत पर
उँची उठती हुई समुंद्र की लहरें
कोसिश,उनपर चलने की
हस रहा हून अपने मॅन की चंचलता पर
डूबता हुआ सूरज
कोसिश,उसके रंग को समेटने की
हसी आ रही है अपनी मानसिक सनकीड़ता पर
एकांत वन में भागिया वस्त्र धारण किए
कोसिश,मोक्ष प्राप्‍त करने की
हस रहा हून अपने म्नुष्या होने पर

Wednesday, September 29, 2010

मालूम ना था !!!!

पंख लगाकर कोशिश थी उड़ने की
मालूम नही था आसमान भी बहुत तंग है
चाह थी अंगरों पे चलने की
मालूम नही था पावं अभी बहुत नर्म है
सपना था सूरज से आँख मिलाने का
मालूम नही था आँखों में रोशिनी बहुत कम है
सोचा था कल की तस्वीर बदलूँगा
मालूम नही था आज में रंग इतना कम है
सपना था समंदर में डूबकी लगाने का
मालूम नही था पानी इतना कम है
सोचा था बहुत कुछ करूँगा
मालूम ना था कुछ भी बहुत कम है

Saturday, September 4, 2010

To all my friends

कदम दो कदम चले थे
ज़िंदगी को मुट्ठी में करने
ख्वाहिशों का परदा आँखों पे डालकर
चल पड़े थे ज़माने से लड़ने
पहली ठोकर थी वो
जिसने छोड़ दिया था मुझे उस अमावस की काली रात में
अकेला तन्हा बिल्कुल टूट चुका था मैं
आँखें बंद कर तलाश रहा था रौशनी की एक किरण को
ढूँढ रहा था मिट्टी की उस खुश्बू को
जो बारिश की पहली बूँद उसे देती है
तभी वो लम्हे बिजली की तरह आ गये मेरी आँखों के सामने
वो खिलखिलाती हुई शामें
वो रोमांचित कर देने वाले दिन
चुप्पी तोड़ चुकी थी वो काली रात
हट चुके थे ख्वाहिशों के पर्दे
अब ठोकरें अक्सर लगा करती है
पर याद कर लिया करता हूँ
उन चन्द मामूली लोगों के साथ बिताए हुए वो अनमोल पल
चेहरे पे मुस्कान लिए फिर निकल पड़ता हूँ
बिना कुछ सोचे बिना कुछ समझे
एक नये रास्ते पर एक नयी मंज़िल के लिए

Thursday, August 26, 2010

socha na tha

माँगा बहुत कुछ इस ज़िंदगी से
पर मिला वो ही जो माँगा ना था
किया बहुत कुछ ज़िंदगी में
मगर हुआ वही जो सोचा ना था

अंधेरों में ऐसी रोशनी तलाशते रहे
चरागों से भी ज़िंदगी में उजाला ना हुआ
मुक्कदर ने ऐसी पीला दी शराब
की ज़िंदगी में नशा दोबारा ना हुआ

हंस हंस के ज़ीन ज़ख़्मों को सहते रहे हम
उनको नासूर बनाने वाले का ठिकाना ना रहा
जिस कश्ती की तलाश में निकले थे हम
कश्ती तो मिली पर किनारा ना रहा

Saturday, August 7, 2010

Bewafa na samajh

मेरी मोहब्बत को इतना कमजोर ना समझ
मेरे जसबातों को इतना खोखला ना समझ
लड़ कर भी तूफ़ानो से निकाला है इस कास्ती को
प्यार के नाम पर इसे मेहरबानी ना समझ

तेरे चले जाने से मंज़र जो तूफान का उठा
उसको इस डूबते हुए का किनारा ना समझ
तेरी आँखों में माना नशा बहुत था
पर उनसे ना पी पाने को मेरी कमज़ोरी ना समझ

पत्थर बन गयी है मेरी आँखें
अब इनसे गिरने वाले आँसुओं को मोती ना समझ
मेरी बेबाक मोहब्बत को मेरी बेवफाई का नाम देकर
कम से कम इस आशिक़ को बेवफा ना समझ

Wednesday, July 28, 2010

ishq bewajah kiya tha kya maine

आज कल जब भी बंद करता हूँ मैं आँखें
तेरा ही चेहरा सामने आ जाता है ,
इश्क़ बेवजह किया था क्या मैने
इस ख़याल से दिल दहल जाता है
तुझे पाने के लिए क्या ना किया मैने
कितने रिश्ते तोड़े इस एक रिश्ते को बनाने के लिए
पर आज खुद को अकेला देखकर
मॅन खिन्न सा हो जाता है
इश्क़ बेवजह किया था क्या मैने
इस ख़याल से दिल दहल जाता है
तेरी हर याद मुझको इस कदर जला रही है
की अब उस रख को स्याही बनाकर
अपनी मोहब्बत की दास्तान लिख रहा हूँ
टूटी कलाम को साथी बना लिया है मैने
अब तो मौत ही अंत करेगी इस किस्से का
इस ख़याल से ज़िंदगी के बचे पल गुज़ार रहा हूँ
इश्क़ बेवजह किया था क्या मैने
इसका फ़ैसला आपके हाथ में छोढ़ कर जा रहा हूँ

Tuesday, April 27, 2010

FOR THOSE WHO ALWAYS WANT TO FALL IN LOVE

यह कुछ शेर उन लोगों के लिए जो आशिक़ है या आशिक़ी में धोखा खाए हुए है


मेरा मॅन भी कायल है इन्ही मदहोश आँखों का
लूट गये ही सबके सब
मगर बाकी अभी हम है


तेरी जुल्फो के साए में यूँ डूब जाए हम
की जैसे ग्रहित सूरज का बाकी निशान ना हो


काई आशिक़ है यहाँ कितनो का दिल टूटा होगा
ज़िंदगी के दो रहे पर किसी से किसी का साथ तो छूटा होगा

ज़ालिम ज़माने को मत कह इसने क्या ना दिया तुझको
ज़ालिम तो वो आँखें है जो खड़ी देख रही बर्बाद होते तुझको


गम इतना मिला की आँखों में आसून ना रहे
कॉसिश बहुत की पर दिल को रोने से ना रोक सके


यह पंक्तियाँ उनके लिए जो किसी भी बात को लेकर निराश हो जाते है

"जब खवाब ही संजोए थे मिट्टी क पुतलों के
तो बारिश तो एक दिन होनी ही थी"

Sunday, March 21, 2010

ज़िंदगी के किस मोड़ पर खड़े है

आज जीवन के उस मोड़ पर खड़े है
हर आस को छोढ़ कर खड़े है
ना हम अपनो से लड़ पाए ना दूसरों से
सफलता की होड़ में सब छोढ़ कर खड़े है

कितने हुए सफल यह जानते है हम
सफलता के सारे बंधानो को तोड़ कर खड़े है
शब्दों के इस जाल से सच्चाई चुप नही सकती
इसलिए इनसे सच्चाई को जोड़ने चले है

क्या कब हुआ यह सोच ना पाए हम
हाल यह है की अब ज़िंदगी से रिश्ता तोड़ कर खड़े है
जो खुद के सपनो को सच ना कर पाए
उस कायर की भाँति
हम अपने सपनो को तोड़ कर खड़े है
ज़रा देखिए तो हम किस मोड़ पर खड़े है