Saturday, September 17, 2011

Tujhse milkar bhi tanha hai

तेरा ही ज़िक्र हर महफ़िल में है
दीदार को तरसते है सभी
हम खुश किस्मत है जो तू हुमारे पास है
तू गुमसूँ हिया लेकिन आँखों सब कह देती है
कुछ समझने की उलझन में है
कुछ नासँझ गुमा में इतरा रहे है
सभी तन्हा तेरी महफ़िल में आया करते है
सभी बेहोश तेरी महफ़िल से जाए करते है
इत्र सा कुछ तुझमें ऐसा है
करार ले लिया है तूने सबका
दुनिया कस्माकश में है की क्या करे
एक हम है जो तुझसे मिलकर भी तन्हा है






Tuesday, March 15, 2011

मोहब्बत बता नादाँ कौन है

तेरे कदमों की आहत और वो मेरा पलट कर देखना
तेरा ज़ुल्फोन को काँधे से हटाकर वो मुस्कुरा देना
तेरे मृग-नैनों के काजल से यूँ मेरा कत्ल सा होना
मोहब्बत?बता नादान कौन है
तेरी एक झलक के लिए वो वक़्त का ठहर सा जाना
तेरा दीदार होते ही वो धड़कानों का सहम सा जाना
तेरी खुशहू और वो बसंत का आना
मोहब्बत?बता नादान कौन है
तेरी पायल की चनछन से वो मॅन का मुगद हो जाना
तेरे गीतों की कल कल से वो हवा का रुख़ बदल जाना
तेरे घूँघट उठाते ही वो कायर चाँद का बादलों में चिप जाना
मोहब्बत?बता नादान कौन है
तेरे ख़यालों से वो मेरी रातों की नीड का उड़ना
तेरी परछाई को अपनी समझकर मेरा भ्रमित सा होना
मेरे हर गीत की बुनियाद में तेरे नाम का होना
मोहब्बत?बता नादान कौन है

Monday, February 28, 2011

बारिश की पहली बूँद,छूने को ललचाई थी
दिनकर के एहसानो से यह मिट्टी भी पथराई थी
कुछ मानवता के क़िस्सों ने रातों की नींद उड़ाई थी
अब बेकौफ़ अकेले सोने में आज़ादी भी भरमाई थी
गोली की बौछारों ने जब माँ की लोरी का स्थान लिया
तब चद्दादर ओढ़ के सोने में नींद गजब की आई थी
जब गाजर मूली के दामों जीवन का व्यापार हुआ
जब स्वेताम्बर को रक्तांबर कर भीषद हाहाकार हुआ
जब कफ़न बेचकर लोगों ने अपनी जेबें भर डालीं थी,
जब आम आदमी की रोटी पर आँख गाड़ा कर बैठे थे
जब खेल खेल में लोगों ने खेलों में खेला खेली की
तब देश पे उन बलिदानो का पूछो आख़िर क्या मोल रहा
अब भ्रष्टाचार की आँधी से आँखों पर ऐसी धूल जमी
जो दिए कभी रोशन करते वो आज अंधेरा देते है
भूखी नंगी मानवता पर कुछ हसी मुझे आ जाती है
हम न्याया माँगते फिरते है हाथों में खंजर लेकर
इस उहा पोह्ह में फासें हुए हम अक्सर चीखा करते है
अब दीवारें भी दरक गयी फिर भी इतना सन्नाटा है
यह आज़ादी का बिगुल है फिर मौत का भीषद सांखनाद