Friday, January 17, 2014

prem prasang part 2

कुछ यादें है
कुछ बहके हुए से ख़याल है
तेरी हसी है जो जीने का मकसद है
तेरे आसू मेरा गहना है
तेरे साथ बिताए हुए पल मेरी तमन्ना
वक़्त था जब खोखलेपन में खुशियाँ ढूंढता था
आज जीवन में इतना रंग है की होली भी फीकी लगती है
अपनी पहली मुलाकात सहमा सा था मैं डरी सी थी तू
कुछ कहने की ज़रूरत महसूस नही होती थी
शायद इश्क़ इसी का नाम है
कुछ यादें है
कुछ बहके हुए से ख़याल
सड़कों पर तेरे साथ हाथों में हाथ डालकर चलना
हसना ना जाने किस बात पर
उन सब के पीछे का सच ढूँढना बेवकूफी सी लगती है
मीलों दूर इक्षाओं से परे
तेरी ज़ुल्फोन के छओन वाले आँगन में
हसी की किल्किलाहट का एक सपना है
कुछ यादें है
कुछ बहके हुए से ख़याल

prem prasang part1

हवायें खुश्क थी
सूरज बादलों में छिपा साँस ले रहा था
सुनसान सड़कें, कदमों की आहट
धड़कन तेज हुई और फिर रुक गयी
मॅन था भी और नही भी
सकपका सा गया मैं
आँखें बंद की और रुक गया
हर पल ऐसे बीट रहा था जैसे सादिया बीट रही हो
सब शांत हो गया था
खामोशी तेरे होने का गीत गये इसका इंतेज़ार कर रहा था
आहट और तेज़ी से बढ़ने लगी
मैं विस्मै का आभार प्रकट कर रहा था
एहसास धड़कनो से जुगलबंदी कर पाती
उससे पहले कानो में एक आवाज़ ने स्थिरता के समग्रा बंधन तोड़ डाले
तेरा चेहरा था बंद आखों में
तेरी खुश्बू थी मेरी साँसों में
और क्या चाहिए था जीने के लिए
आँखें खोलने का फ़ैसला किया मैने
सब बदल चुका था
ना सड़कें सुनसान थी
सूरज भी अपनी फ़िज़ा बिखेर रहा था
घड़ी देखी ,काफ़ी देर हो गयी थी शायद
बक्सा उठाया और उस सुनहरे से पल के साथ घर की ओर चल पड़ा