Friday, February 17, 2012

zindagi

पत्तियाँ हिलती थी ,फिर खामोशी उनपर अपना हक़ जताती थी
होली के रंग में साने हुए खुद को सतरंगी बोलते थे
पानी की हर बूँद रंग को फीका कर जाती थी
मैं खामोश हस्ता था ज़िंदगी के इस मुशायरे में
पल थम जाए करते , मैं फिर भी हस्ता रहता
आँधी ने सब कुछ बिखेर दिया, मैं बोला देखते है
जब तक तेरी खूशबू भी है मेरे साथ फ़िक्र किसको है
कलाम की स्याही सूख सी गयी है,लिखने का मॅन कर रहा है
कसिश की स्याही मिल गयी मैने अफ़साना लिख डाला
फिर क्या था सुंदरता का परिणय था हर दृश्या
झरोखे से काग़ज़ हटा कर रोशनी आने दी मैने
और फिर हास पड़ा ज़िंदगी के उस शेर पर

शायद करवट ले रही थी zindagi

चाँद अश्कों की गुलामी थी
कुछ लम्हो की बदसलूकी थी
पर्दे के पीछे खड़े होने की तकालूफ
या फिर शर्म को महस्सोस करके भी उसका सजदा
गुमान था हर सील पर हर अक्षर पर
निकला बेइन्तेहन्न जसबातों के साथ
बह गया पर्दे के पीछे के सच पर
रातें बिखर गयी रंग कुछ गुमसूँ से
कहना था, ज़बान मुकर गयी
गले मिल रही थी तन्हाई और ज़िंदगी
हास रहा था मैं लेकिन, बेचारा
शायद नज़म ख़तम होने को थी
हर श्कश रोने की कॉसिश कर रहा था
सब ठहर सा गया था
सहमी हुई सी कसिश खुद को बयान कर रही थी
अकेले चलने का शमा भी कुछ थम सा गया था
शायद करवट ले रही थी ज़िंदगी

ehsaas

आँखें बंद करके ,ख़ालीपन से दूर
पूरनी हवेली की दीवार पर लाकती हुई उस तस्वीर की एक झलक
रौशानदान से धूप का अंधेरे को चीड़ देना
उदास क़ैद कर लेना खुद को ,फिर दरवाजे पर एक दस्तक
दोस्ती की महक से सारी उदासी का खुशियों में बदल जाना
लाखों सपने आँखों में लिए,
मालूम नही क्यूँ उन चाँद लोगों के साथ सब संभव लगता था
हवा का एक झोंका आया ,आँखें खुल सी गयी
अतीत का वो सुनेहरा दृश्या फिर से फींका पद गया
ऐसे पल शायद ज़िंदगी में मुजाहिर बन चुके है
फिर भी मिट्टी की बदलती खुश्बू में कहीं ना कहीं उनका अर्क है
उसे ढूंढता हूँ