आँखें बंद करके ,ख़ालीपन से दूर
पूरनी हवेली की दीवार पर लाकती हुई उस तस्वीर की एक झलक
रौशानदान से धूप का अंधेरे को चीड़ देना
उदास क़ैद कर लेना खुद को ,फिर दरवाजे पर एक दस्तक
दोस्ती की महक से सारी उदासी का खुशियों में बदल जाना
लाखों सपने आँखों में लिए,
मालूम नही क्यूँ उन चाँद लोगों के साथ सब संभव लगता था
हवा का एक झोंका आया ,आँखें खुल सी गयी
अतीत का वो सुनेहरा दृश्या फिर से फींका पद गया
ऐसे पल शायद ज़िंदगी में मुजाहिर बन चुके है
फिर भी मिट्टी की बदलती खुश्बू में कहीं ना कहीं उनका अर्क है
उसे ढूंढता हूँ
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