आज कल जब भी बंद करता हूँ मैं आँखें
तेरा ही चेहरा सामने आ जाता है ,
इश्क़ बेवजह किया था क्या मैने
इस ख़याल से दिल दहल जाता है
तुझे पाने के लिए क्या ना किया मैने
कितने रिश्ते तोड़े इस एक रिश्ते को बनाने के लिए
पर आज खुद को अकेला देखकर
मॅन खिन्न सा हो जाता है
इश्क़ बेवजह किया था क्या मैने
इस ख़याल से दिल दहल जाता है
तेरी हर याद मुझको इस कदर जला रही है
की अब उस रख को स्याही बनाकर
अपनी मोहब्बत की दास्तान लिख रहा हूँ
टूटी कलाम को साथी बना लिया है मैने
अब तो मौत ही अंत करेगी इस किस्से का
इस ख़याल से ज़िंदगी के बचे पल गुज़ार रहा हूँ
इश्क़ बेवजह किया था क्या मैने
इसका फ़ैसला आपके हाथ में छोढ़ कर जा रहा हूँ