Friday, August 29, 2014

Shayad

हर मोड़ पर साथ मिला अपनो का
हर बाजी जीतने की कॉसिश की उसने
हार काफिलों में दबी सहमी आती रही
जीत की लालसा ना छोड़ी उसने
नाम करना चाहता था हर पल अपनो के
सिकस्त ऐसी मिली की जीत की चाह ना की उसने
उसकी डायरी के कुछ पन्नो की बात है
ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो कुछ अधूरा सा है उनमें
कहीं स्याही बदलने की कोसिश तो कहीं अल्फाज़ों की झुंझलाहट
कुछ अजीब सा दर्द खाए जा रहा था
फिर भी मुस्कुराहतों के नाम पर जीने की कॉसिश की उसने
लतीफ़े कहीं तो कहीं रुके हुए आँसू
ख़यालों का हर दो कदम पर मुजाहिर हो जाना
कोई मकसद ढूँढ रहा था शायद
इसलिए ज़िंदगी से दोस्ती कर ली उसने

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