Sunday, February 15, 2015

Chand sher

लोग मुझसे तेरे घर का पता माँगते है
कलम निकाल कर लिखता हूँ मिटा देता हूँ
सोचता कहीं यह भी उस संकरी गली में दिल ना हार जाए

लाख आए तेरी महफ़िल में ज़ुबान देने अपनी ख़्वाहइसों को
हम आए तो ऐसे दाग लेकर की तू कब बेजूबान हुई तुझे ही पता नही

दीवार पर लटकी तस्वीर को विस्मय में देखते है सभी
एक हम है जो मन में तेरी याद को बनाया मिटाया करते है

बहकते थे दो कदम तो भटक जाया करते थे
आज चार है तो मंज़िल सामने है

महफ़िलों में मेरी ख्वाहिशों के ताबूत निकली ऐसे
जिनसे मिलेने की तमन्ना की वो दूर खड़े देखते रहे मिट्टी में मिलते मुझको

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