Friday, January 17, 2014

prem prasang part 2

कुछ यादें है
कुछ बहके हुए से ख़याल है
तेरी हसी है जो जीने का मकसद है
तेरे आसू मेरा गहना है
तेरे साथ बिताए हुए पल मेरी तमन्ना
वक़्त था जब खोखलेपन में खुशियाँ ढूंढता था
आज जीवन में इतना रंग है की होली भी फीकी लगती है
अपनी पहली मुलाकात सहमा सा था मैं डरी सी थी तू
कुछ कहने की ज़रूरत महसूस नही होती थी
शायद इश्क़ इसी का नाम है
कुछ यादें है
कुछ बहके हुए से ख़याल
सड़कों पर तेरे साथ हाथों में हाथ डालकर चलना
हसना ना जाने किस बात पर
उन सब के पीछे का सच ढूँढना बेवकूफी सी लगती है
मीलों दूर इक्षाओं से परे
तेरी ज़ुल्फोन के छओन वाले आँगन में
हसी की किल्किलाहट का एक सपना है
कुछ यादें है
कुछ बहके हुए से ख़याल

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