माँगा बहुत कुछ इस ज़िंदगी से
पर मिला वो ही जो माँगा ना था
किया बहुत कुछ ज़िंदगी में
मगर हुआ वही जो सोचा ना था
अंधेरों में ऐसी रोशनी तलाशते रहे
चरागों से भी ज़िंदगी में उजाला ना हुआ
मुक्कदर ने ऐसी पीला दी शराब
की ज़िंदगी में नशा दोबारा ना हुआ
हंस हंस के ज़ीन ज़ख़्मों को सहते रहे हम
उनको नासूर बनाने वाले का ठिकाना ना रहा
जिस कश्ती की तलाश में निकले थे हम
कश्ती तो मिली पर किनारा ना रहा
Thursday, August 26, 2010
Saturday, August 7, 2010
Bewafa na samajh
मेरी मोहब्बत को इतना कमजोर ना समझ
मेरे जसबातों को इतना खोखला ना समझ
लड़ कर भी तूफ़ानो से निकाला है इस कास्ती को
प्यार के नाम पर इसे मेहरबानी ना समझ
तेरे चले जाने से मंज़र जो तूफान का उठा
उसको इस डूबते हुए का किनारा ना समझ
तेरी आँखों में माना नशा बहुत था
पर उनसे ना पी पाने को मेरी कमज़ोरी ना समझ
पत्थर बन गयी है मेरी आँखें
अब इनसे गिरने वाले आँसुओं को मोती ना समझ
मेरी बेबाक मोहब्बत को मेरी बेवफाई का नाम देकर
कम से कम इस आशिक़ को बेवफा ना समझ
मेरे जसबातों को इतना खोखला ना समझ
लड़ कर भी तूफ़ानो से निकाला है इस कास्ती को
प्यार के नाम पर इसे मेहरबानी ना समझ
तेरे चले जाने से मंज़र जो तूफान का उठा
उसको इस डूबते हुए का किनारा ना समझ
तेरी आँखों में माना नशा बहुत था
पर उनसे ना पी पाने को मेरी कमज़ोरी ना समझ
पत्थर बन गयी है मेरी आँखें
अब इनसे गिरने वाले आँसुओं को मोती ना समझ
मेरी बेबाक मोहब्बत को मेरी बेवफाई का नाम देकर
कम से कम इस आशिक़ को बेवफा ना समझ
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