Sunday, February 15, 2015

Chand sher

लोग मुझसे तेरे घर का पता माँगते है
कलम निकाल कर लिखता हूँ मिटा देता हूँ
सोचता कहीं यह भी उस संकरी गली में दिल ना हार जाए

लाख आए तेरी महफ़िल में ज़ुबान देने अपनी ख़्वाहइसों को
हम आए तो ऐसे दाग लेकर की तू कब बेजूबान हुई तुझे ही पता नही

दीवार पर लटकी तस्वीर को विस्मय में देखते है सभी
एक हम है जो मन में तेरी याद को बनाया मिटाया करते है

बहकते थे दो कदम तो भटक जाया करते थे
आज चार है तो मंज़िल सामने है

महफ़िलों में मेरी ख्वाहिशों के ताबूत निकली ऐसे
जिनसे मिलेने की तमन्ना की वो दूर खड़े देखते रहे मिट्टी में मिलते मुझको

Friday, August 29, 2014

Shayad

हर मोड़ पर साथ मिला अपनो का
हर बाजी जीतने की कॉसिश की उसने
हार काफिलों में दबी सहमी आती रही
जीत की लालसा ना छोड़ी उसने
नाम करना चाहता था हर पल अपनो के
सिकस्त ऐसी मिली की जीत की चाह ना की उसने
उसकी डायरी के कुछ पन्नो की बात है
ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो कुछ अधूरा सा है उनमें
कहीं स्याही बदलने की कोसिश तो कहीं अल्फाज़ों की झुंझलाहट
कुछ अजीब सा दर्द खाए जा रहा था
फिर भी मुस्कुराहतों के नाम पर जीने की कॉसिश की उसने
लतीफ़े कहीं तो कहीं रुके हुए आँसू
ख़यालों का हर दो कदम पर मुजाहिर हो जाना
कोई मकसद ढूँढ रहा था शायद
इसलिए ज़िंदगी से दोस्ती कर ली उसने

Friday, January 17, 2014

prem prasang part 2

कुछ यादें है
कुछ बहके हुए से ख़याल है
तेरी हसी है जो जीने का मकसद है
तेरे आसू मेरा गहना है
तेरे साथ बिताए हुए पल मेरी तमन्ना
वक़्त था जब खोखलेपन में खुशियाँ ढूंढता था
आज जीवन में इतना रंग है की होली भी फीकी लगती है
अपनी पहली मुलाकात सहमा सा था मैं डरी सी थी तू
कुछ कहने की ज़रूरत महसूस नही होती थी
शायद इश्क़ इसी का नाम है
कुछ यादें है
कुछ बहके हुए से ख़याल
सड़कों पर तेरे साथ हाथों में हाथ डालकर चलना
हसना ना जाने किस बात पर
उन सब के पीछे का सच ढूँढना बेवकूफी सी लगती है
मीलों दूर इक्षाओं से परे
तेरी ज़ुल्फोन के छओन वाले आँगन में
हसी की किल्किलाहट का एक सपना है
कुछ यादें है
कुछ बहके हुए से ख़याल

prem prasang part1

हवायें खुश्क थी
सूरज बादलों में छिपा साँस ले रहा था
सुनसान सड़कें, कदमों की आहट
धड़कन तेज हुई और फिर रुक गयी
मॅन था भी और नही भी
सकपका सा गया मैं
आँखें बंद की और रुक गया
हर पल ऐसे बीट रहा था जैसे सादिया बीट रही हो
सब शांत हो गया था
खामोशी तेरे होने का गीत गये इसका इंतेज़ार कर रहा था
आहट और तेज़ी से बढ़ने लगी
मैं विस्मै का आभार प्रकट कर रहा था
एहसास धड़कनो से जुगलबंदी कर पाती
उससे पहले कानो में एक आवाज़ ने स्थिरता के समग्रा बंधन तोड़ डाले
तेरा चेहरा था बंद आखों में
तेरी खुश्बू थी मेरी साँसों में
और क्या चाहिए था जीने के लिए
आँखें खोलने का फ़ैसला किया मैने
सब बदल चुका था
ना सड़कें सुनसान थी
सूरज भी अपनी फ़िज़ा बिखेर रहा था
घड़ी देखी ,काफ़ी देर हो गयी थी शायद
बक्सा उठाया और उस सुनहरे से पल के साथ घर की ओर चल पड़ा

Thursday, August 8, 2013

dard hi bantate jao

वहाँ तन्हा क्या खड़े हो
इस भीड़ का हिस्सा बन जाओ
हिम्मत से ना सही , कायरता से
कम से कम दो वक़्त की रोटी तो खाओ

यूँ खुशी की तलाश में क्यूँ हो
इस दर्द का हिस्सा बन जाओ
तलाशने की कूबत नही है तुम में
कम से कम किसिका दर्द ही बाँटते जाओ

यूँ भौतिकता के दामन को थाम कर
हल निकल सकता नही समस्या का
थोड़ी चोरी कर लो, तोड़ा डरा लो मासूमों को
अपने का इलाज ही करते जाओ

तुमसे मुखातिब नही है ज़िंदगी के पहलू
उन्हे कुरेदो मत नासूर बन जाएँगे
बिना घाओ के मरहम लगा लो
कम से कम दर्द का एहसास ना होगा तुमको

Friday, February 17, 2012

zindagi

पत्तियाँ हिलती थी ,फिर खामोशी उनपर अपना हक़ जताती थी
होली के रंग में साने हुए खुद को सतरंगी बोलते थे
पानी की हर बूँद रंग को फीका कर जाती थी
मैं खामोश हस्ता था ज़िंदगी के इस मुशायरे में
पल थम जाए करते , मैं फिर भी हस्ता रहता
आँधी ने सब कुछ बिखेर दिया, मैं बोला देखते है
जब तक तेरी खूशबू भी है मेरे साथ फ़िक्र किसको है
कलाम की स्याही सूख सी गयी है,लिखने का मॅन कर रहा है
कसिश की स्याही मिल गयी मैने अफ़साना लिख डाला
फिर क्या था सुंदरता का परिणय था हर दृश्या
झरोखे से काग़ज़ हटा कर रोशनी आने दी मैने
और फिर हास पड़ा ज़िंदगी के उस शेर पर

शायद करवट ले रही थी zindagi

चाँद अश्कों की गुलामी थी
कुछ लम्हो की बदसलूकी थी
पर्दे के पीछे खड़े होने की तकालूफ
या फिर शर्म को महस्सोस करके भी उसका सजदा
गुमान था हर सील पर हर अक्षर पर
निकला बेइन्तेहन्न जसबातों के साथ
बह गया पर्दे के पीछे के सच पर
रातें बिखर गयी रंग कुछ गुमसूँ से
कहना था, ज़बान मुकर गयी
गले मिल रही थी तन्हाई और ज़िंदगी
हास रहा था मैं लेकिन, बेचारा
शायद नज़म ख़तम होने को थी
हर श्कश रोने की कॉसिश कर रहा था
सब ठहर सा गया था
सहमी हुई सी कसिश खुद को बयान कर रही थी
अकेले चलने का शमा भी कुछ थम सा गया था
शायद करवट ले रही थी ज़िंदगी