लोग मुझसे तेरे घर का पता माँगते है
कलम निकाल कर लिखता हूँ मिटा देता हूँ
सोचता कहीं यह भी उस संकरी गली में दिल ना हार जाए
लाख आए तेरी महफ़िल में ज़ुबान देने अपनी ख़्वाहइसों को
हम आए तो ऐसे दाग लेकर की तू कब बेजूबान हुई तुझे ही पता नही
दीवार पर लटकी तस्वीर को विस्मय में देखते है सभी
एक हम है जो मन में तेरी याद को बनाया मिटाया करते है
बहकते थे दो कदम तो भटक जाया करते थे
आज चार है तो मंज़िल सामने है
महफ़िलों में मेरी ख्वाहिशों के ताबूत निकली ऐसे
जिनसे मिलेने की तमन्ना की वो दूर खड़े देखते रहे मिट्टी में मिलते मुझको
कलम निकाल कर लिखता हूँ मिटा देता हूँ
सोचता कहीं यह भी उस संकरी गली में दिल ना हार जाए
लाख आए तेरी महफ़िल में ज़ुबान देने अपनी ख़्वाहइसों को
हम आए तो ऐसे दाग लेकर की तू कब बेजूबान हुई तुझे ही पता नही
दीवार पर लटकी तस्वीर को विस्मय में देखते है सभी
एक हम है जो मन में तेरी याद को बनाया मिटाया करते है
बहकते थे दो कदम तो भटक जाया करते थे
आज चार है तो मंज़िल सामने है
महफ़िलों में मेरी ख्वाहिशों के ताबूत निकली ऐसे
जिनसे मिलेने की तमन्ना की वो दूर खड़े देखते रहे मिट्टी में मिलते मुझको