tag:blogger.com,1999:blog-3510547943914123172024-02-19T23:16:55.029-08:00meri kahani mere shabdNitesh Mishrahttp://www.blogger.com/profile/02134285310514456720noreply@blogger.comBlogger19125tag:blogger.com,1999:blog-351054794391412317.post-17784644185309559182015-02-15T06:48:00.000-08:002015-02-15T10:32:05.371-08:00Chand sher<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
लोग मुझसे तेरे घर का पता माँगते है<br />
कलम निकाल कर लिखता हूँ मिटा देता हूँ<br />
सोचता कहीं यह भी उस संकरी गली में दिल ना हार जाए<br />
<br />
लाख आए तेरी महफ़िल में ज़ुबान देने अपनी ख़्वाहइसों को<br />
हम आए तो ऐसे दाग लेकर की तू कब बेजूबान हुई तुझे ही पता नही<br />
<br />
दीवार पर लटकी तस्वीर को विस्मय में देखते है सभी<br />
एक हम है जो मन में तेरी याद को बनाया मिटाया करते है<br />
<br />
बहकते थे दो कदम तो भटक जाया करते थे<br />
आज चार है तो मंज़िल सामने है<br />
<br />
महफ़िलों में मेरी ख्वाहिशों के ताबूत निकली ऐसे<br />
जिनसे मिलेने की तमन्ना की वो दूर खड़े देखते रहे मिट्टी में मिलते मुझको<br />
<div>
<br /></div>
</div>
Nitesh Mishrahttp://www.blogger.com/profile/02134285310514456720noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-351054794391412317.post-14402459327602865182014-08-29T06:35:00.002-07:002014-08-29T06:35:21.195-07:00Shayad<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
हर मोड़ पर साथ मिला अपनो का<br />
हर बाजी जीतने की कॉसिश की उसने<br />
हार काफिलों में दबी सहमी आती रही<br />
जीत की लालसा ना छोड़ी उसने<br />
नाम करना चाहता था हर पल अपनो के<br />
सिकस्त ऐसी मिली की जीत की चाह ना की उसने<br />
उसकी डायरी के कुछ पन्नो की बात है<br />
ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो कुछ अधूरा सा है उनमें<br />
कहीं स्याही बदलने की कोसिश तो कहीं अल्फाज़ों की झुंझलाहट<br />
कुछ अजीब सा दर्द खाए जा रहा था<br />
फिर भी मुस्कुराहतों के नाम पर जीने की कॉसिश की उसने<br />
लतीफ़े कहीं तो कहीं रुके हुए आँसू<br />
ख़यालों का हर दो कदम पर मुजाहिर हो जाना<br />
कोई मकसद ढूँढ रहा था शायद<br />
इसलिए ज़िंदगी से दोस्ती कर ली उसने</div>
Nitesh Mishrahttp://www.blogger.com/profile/02134285310514456720noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-351054794391412317.post-16653704972882785992014-01-17T04:47:00.000-08:002014-01-17T04:47:04.008-08:00prem prasang part 2<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
कुछ यादें है<br />
कुछ बहके हुए से ख़याल है<br />
तेरी हसी है जो जीने का मकसद है<br />
तेरे आसू मेरा गहना है<br />
तेरे साथ बिताए हुए पल मेरी तमन्ना<br />
वक़्त था जब खोखलेपन में खुशियाँ ढूंढता था<br />
आज जीवन में इतना रंग है की होली भी फीकी लगती है<br />
अपनी पहली मुलाकात सहमा सा था मैं डरी सी थी तू<br />
कुछ कहने की ज़रूरत महसूस नही होती थी<br />
शायद इश्क़ इसी का नाम है<br />
कुछ यादें है<br />
कुछ बहके हुए से ख़याल<br />
सड़कों पर तेरे साथ हाथों में हाथ डालकर चलना<br />
हसना ना जाने किस बात पर<br />
उन सब के पीछे का सच ढूँढना बेवकूफी सी लगती है<br />
मीलों दूर इक्षाओं से परे<br />
तेरी ज़ुल्फोन के छओन वाले आँगन में<br />
हसी की किल्किलाहट का एक सपना है<br />
कुछ यादें है<br />
कुछ बहके हुए से ख़याल<br />
<br /></div>
Nitesh Mishrahttp://www.blogger.com/profile/02134285310514456720noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-351054794391412317.post-4886482093320425392014-01-17T04:26:00.001-08:002014-01-17T04:26:25.442-08:00prem prasang part1<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
हवायें खुश्क थी<br />
सूरज बादलों में छिपा साँस ले रहा था<br />
सुनसान सड़कें, कदमों की आहट<br />
धड़कन तेज हुई और फिर रुक गयी<br />
मॅन था भी और नही भी<br />
सकपका सा गया मैं<br />
आँखें बंद की और रुक गया<br />
हर पल ऐसे बीट रहा था जैसे सादिया बीट रही हो<br />
सब शांत हो गया था<br />
खामोशी तेरे होने का गीत गये इसका इंतेज़ार कर रहा था<br />
आहट और तेज़ी से बढ़ने लगी<br />
मैं विस्मै का आभार प्रकट कर रहा था<br />
एहसास धड़कनो से जुगलबंदी कर पाती<br />
उससे पहले कानो में एक आवाज़ ने स्थिरता के समग्रा बंधन तोड़ डाले<br />
तेरा चेहरा था बंद आखों में<br />
तेरी खुश्बू थी मेरी साँसों में<br />
और क्या चाहिए था जीने के लिए<br />
आँखें खोलने का फ़ैसला किया मैने<br />
सब बदल चुका था<br />
ना सड़कें सुनसान थी<br />
सूरज भी अपनी फ़िज़ा बिखेर रहा था<br />
घड़ी देखी ,काफ़ी देर हो गयी थी शायद<br />
बक्सा उठाया और उस सुनहरे से पल के साथ घर की ओर चल पड़ा<br />
<div>
<br /></div>
</div>
Nitesh Mishrahttp://www.blogger.com/profile/02134285310514456720noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-351054794391412317.post-74192216406216408062013-08-08T01:26:00.001-07:002013-08-08T01:26:02.347-07:00dard hi bantate jao <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
वहाँ तन्हा क्या खड़े हो<br />
इस भीड़ का हिस्सा बन जाओ<br />
हिम्मत से ना सही , कायरता से<br />
कम से कम दो वक़्त की रोटी तो खाओ<br />
<br />
यूँ खुशी की तलाश में क्यूँ हो<br />
इस दर्द का हिस्सा बन जाओ<br />
तलाशने की कूबत नही है तुम में<br />
कम से कम किसिका दर्द ही बाँटते जाओ<br />
<br />
यूँ भौतिकता के दामन को थाम कर<br />
हल निकल सकता नही समस्या का<br />
थोड़ी चोरी कर लो, तोड़ा डरा लो मासूमों को<br />
अपने का इलाज ही करते जाओ<br />
<br />
तुमसे मुखातिब नही है ज़िंदगी के पहलू<br />
उन्हे कुरेदो मत नासूर बन जाएँगे<br />
बिना घाओ के मरहम लगा लो<br />
कम से कम दर्द का एहसास ना होगा तुमको<br />
<div>
<br /></div>
</div>
Nitesh Mishrahttp://www.blogger.com/profile/02134285310514456720noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-351054794391412317.post-72017990776434622872012-02-17T13:26:00.000-08:002012-02-17T13:27:02.201-08:00zindagiपत्तियाँ हिलती थी ,फिर खामोशी उनपर अपना हक़ जताती थी<br />होली के रंग में साने हुए खुद को सतरंगी बोलते थे<br />पानी की हर बूँद रंग को फीका कर जाती थी<br />मैं खामोश हस्ता था ज़िंदगी के इस मुशायरे में<br />पल थम जाए करते , मैं फिर भी हस्ता रहता<br />आँधी ने सब कुछ बिखेर दिया, मैं बोला देखते है<br />जब तक तेरी खूशबू भी है मेरे साथ फ़िक्र किसको है<br />कलाम की स्याही सूख सी गयी है,लिखने का मॅन कर रहा है<br />कसिश की स्याही मिल गयी मैने अफ़साना लिख डाला<br />फिर क्या था सुंदरता का परिणय था हर दृश्या<br />झरोखे से काग़ज़ हटा कर रोशनी आने दी मैने<br />और फिर हास पड़ा ज़िंदगी के उस शेर परNitesh Mishrahttp://www.blogger.com/profile/02134285310514456720noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-351054794391412317.post-85124749098589039032012-02-17T13:21:00.000-08:002012-02-17T13:24:07.491-08:00शायद करवट ले रही थी zindagiचाँद अश्कों की गुलामी थी<br />कुछ लम्हो की बदसलूकी थी<br />पर्दे के पीछे खड़े होने की तकालूफ<br />या फिर शर्म को महस्सोस करके भी उसका सजदा<br />गुमान था हर सील पर हर अक्षर पर<br />निकला बेइन्तेहन्न जसबातों के साथ<br />बह गया पर्दे के पीछे के सच पर<br />रातें बिखर गयी रंग कुछ गुमसूँ से<br />कहना था, ज़बान मुकर गयी<br />गले मिल रही थी तन्हाई और ज़िंदगी<br />हास रहा था मैं लेकिन, बेचारा<br />शायद नज़म ख़तम होने को थी<br />हर श्कश रोने की कॉसिश कर रहा था<br />सब ठहर सा गया था<br />सहमी हुई सी कसिश खुद को बयान कर रही थी<br />अकेले चलने का शमा भी कुछ थम सा गया था<br />शायद करवट ले रही थी ज़िंदगीNitesh Mishrahttp://www.blogger.com/profile/02134285310514456720noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-351054794391412317.post-69062315806638688972012-02-17T13:20:00.000-08:002012-02-17T13:21:16.424-08:00ehsaasआँखें बंद करके ,ख़ालीपन से दूर<br />पूरनी हवेली की दीवार पर लाकती हुई उस तस्वीर की एक झलक<br />रौशानदान से धूप का अंधेरे को चीड़ देना<br />उदास क़ैद कर लेना खुद को ,फिर दरवाजे पर एक दस्तक<br />दोस्ती की महक से सारी उदासी का खुशियों में बदल जाना<br />लाखों सपने आँखों में लिए,<br />मालूम नही क्यूँ उन चाँद लोगों के साथ सब संभव लगता था<br />हवा का एक झोंका आया ,आँखें खुल सी गयी<br />अतीत का वो सुनेहरा दृश्या फिर से फींका पद गया<br />ऐसे पल शायद ज़िंदगी में मुजाहिर बन चुके है<br />फिर भी मिट्टी की बदलती खुश्बू में कहीं ना कहीं उनका अर्क है<br />उसे ढूंढता हूँNitesh Mishrahttp://www.blogger.com/profile/02134285310514456720noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-351054794391412317.post-33725713091631598092011-09-17T23:24:00.000-07:002011-09-17T23:28:42.221-07:00Tujhse milkar bhi tanha hai<div>तेरा ही ज़िक्र हर महफ़िल में है</div><div>दीदार को तरसते है सभी</div><div>हम खुश किस्मत है जो तू हुमारे पास है</div><div>तू गुमसूँ हिया लेकिन आँखों सब कह देती है</div><div>कुछ समझने की उलझन में है</div><div>कुछ नासँझ गुमा में इतरा रहे है</div><div>सभी तन्हा तेरी महफ़िल में आया करते है</div><div>सभी बेहोश तेरी महफ़िल से जाए करते है</div><div>इत्र सा कुछ तुझमें ऐसा है</div><div>करार ले लिया है तूने सबका</div><div>दुनिया कस्माकश में है की क्या करे</div><div>एक हम है जो तुझसे मिलकर भी तन्हा है</div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div>Nitesh Mishrahttp://www.blogger.com/profile/02134285310514456720noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-351054794391412317.post-60478459400369891002011-03-15T14:22:00.000-07:002011-06-23T05:03:45.036-07:00मोहब्बत बता नादाँ कौन हैतेरे कदमों की आहत और वो मेरा पलट कर देखना<br />तेरा ज़ुल्फोन को काँधे से हटाकर वो मुस्कुरा देना<br />तेरे मृग-नैनों के काजल से यूँ मेरा कत्ल सा होना<br />मोहब्बत?बता नादान कौन है<br />तेरी एक झलक के लिए वो वक़्त का ठहर सा जाना<br />तेरा दीदार होते ही वो धड़कानों का सहम सा जाना<br />तेरी खुशहू और वो बसंत का आना<br />मोहब्बत?बता नादान कौन है<br />तेरी पायल की चनछन से वो मॅन का मुगद हो जाना<br />तेरे गीतों की कल कल से वो हवा का रुख़ बदल जाना<br />तेरे घूँघट उठाते ही वो कायर चाँद का बादलों में चिप जाना<br />मोहब्बत?बता नादान कौन है<br />तेरे ख़यालों से वो मेरी रातों की नीड का उड़ना<br />तेरी परछाई को अपनी समझकर मेरा भ्रमित सा होना<br />मेरे हर गीत की बुनियाद में तेरे नाम का होना<br />मोहब्बत?बता नादान कौन हैNitesh Mishrahttp://www.blogger.com/profile/02134285310514456720noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-351054794391412317.post-20695833224549410992011-02-28T13:12:00.001-08:002011-02-28T17:01:55.970-08:00<div><div><div><div><div>बारिश की पहली बूँद,छूने को ललचाई थी</div><div>दिनकर के एहसानो से यह मिट्टी भी पथराई थी</div><div>कुछ मानवता के क़िस्सों ने रातों की नींद उड़ाई थी</div><div>अब बेकौफ़ अकेले सोने में आज़ादी भी भरमाई थी</div><div>गोली की बौछारों ने जब माँ की लोरी का स्थान लिया</div><div>तब चद्दादर ओढ़ के सोने में नींद गजब की आई थी</div><div>जब गाजर मूली के दामों जीवन का व्यापार हुआ</div><div>जब स्वेताम्बर को रक्तांबर कर भीषद हाहाकार हुआ</div><div>जब कफ़न बेचकर लोगों ने अपनी जेबें भर डालीं थी,</div><div>जब आम आदमी की रोटी पर आँख गाड़ा कर बैठे थे</div><div>जब खेल खेल में लोगों ने खेलों में खेला खेली की</div><div>तब देश पे उन बलिदानो का पूछो आख़िर क्या मोल रहा</div><div>अब भ्रष्टाचार की आँधी से आँखों पर ऐसी धूल जमी</div><div>जो दिए कभी रोशन करते वो आज अंधेरा देते है</div><div>भूखी नंगी मानवता पर कुछ हसी मुझे आ जाती है</div><div>हम न्याया माँगते फिरते है हाथों में खंजर लेकर</div><div>इस उहा पोह्ह में फासें हुए हम अक्सर चीखा करते है</div><div>अब दीवारें भी दरक गयी फिर भी इतना सन्नाटा है</div><div>यह आज़ादी का बिगुल है फिर मौत का भीषद सांखनाद</div></div></div></div></div>Nitesh Mishrahttp://www.blogger.com/profile/02134285310514456720noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-351054794391412317.post-55527363834491165562010-12-31T02:29:00.000-08:002010-12-31T02:32:12.416-08:00jeevan ek vyang<div>बंद खिड़की और दूर इक झील </div><div>कोसिश,उसकी गहराई नापने की</div><div>हस रहा हून अपनी कल्पना और असमर्थता पर</div><div>बाँध रहा हून मुट्ठी में रेत </div><div>हर तिनके को कोसिश पकड़ने की</div><div>हसी आ रही है खुद की जिद पर</div><div>अमावस की घनघोर काली रात</div><div>कोसिश,रौशनी की एक किरण से अंधेरा मिटाने की</div><div>हस रहा हून अपनी अनंत इक्षाओं पर</div><div>गगनचूम्बी इमारत की छत </div><div>कोसिश,आसमान को छूने की</div><div>हस रहा हून अपनी बेकार हुई मेहनत पर</div><div>उँची उठती हुई समुंद्र की लहरें</div><div>कोसिश,उनपर चलने की</div><div>हस रहा हून अपने मॅन की चंचलता पर</div><div>डूबता हुआ सूरज</div><div>कोसिश,उसके रंग को समेटने की</div><div>हसी आ रही है अपनी मानसिक सनकीड़ता पर</div><div>एकांत वन में भागिया वस्त्र धारण किए</div><div>कोसिश,मोक्ष प्राप्त करने की</div><div>हस रहा हून अपने म्नुष्या होने पर </div><div><br /></div>Nitesh Mishrahttp://www.blogger.com/profile/02134285310514456720noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-351054794391412317.post-20910748318146772942010-09-29T17:59:00.000-07:002010-09-29T18:00:10.192-07:00मालूम ना था !!!!पंख लगाकर कोशिश थी उड़ने की<br />मालूम नही था आसमान भी बहुत तंग है<br />चाह थी अंगरों पे चलने की<br />मालूम नही था पावं अभी बहुत नर्म है<br />सपना था सूरज से आँख मिलाने का<br />मालूम नही था आँखों में रोशिनी बहुत कम है<br />सोचा था कल की तस्वीर बदलूँगा<br />मालूम नही था आज में रंग इतना कम है<br />सपना था समंदर में डूबकी लगाने का<br />मालूम नही था पानी इतना कम है<br />सोचा था बहुत कुछ करूँगा<br />मालूम ना था कुछ भी बहुत कम हैNitesh Mishrahttp://www.blogger.com/profile/02134285310514456720noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-351054794391412317.post-66008841564501086082010-09-04T18:07:00.000-07:002010-09-04T18:09:47.609-07:00To all my friendsकदम दो कदम चले थे<br />ज़िंदगी को मुट्ठी में करने<br />ख्वाहिशों का परदा आँखों पे डालकर<br />चल पड़े थे ज़माने से लड़ने<br />पहली ठोकर थी वो<br />जिसने छोड़ दिया था मुझे उस अमावस की काली रात में<br />अकेला तन्हा बिल्कुल टूट चुका था मैं<br />आँखें बंद कर तलाश रहा था रौशनी की एक किरण को<br />ढूँढ रहा था मिट्टी की उस खुश्बू को<br />जो बारिश की पहली बूँद उसे देती है<br />तभी वो लम्हे बिजली की तरह आ गये मेरी आँखों के सामने<br />वो खिलखिलाती हुई शामें<br />वो रोमांचित कर देने वाले दिन<br />चुप्पी तोड़ चुकी थी वो काली रात<br />हट चुके थे ख्वाहिशों के पर्दे<br />अब ठोकरें अक्सर लगा करती है<br />पर याद कर लिया करता हूँ<br />उन चन्द मामूली लोगों के साथ बिताए हुए वो अनमोल पल<br />चेहरे पे मुस्कान लिए फिर निकल पड़ता हूँ<br />बिना कुछ सोचे बिना कुछ समझे<br />एक नये रास्ते पर एक नयी मंज़िल के लिएNitesh Mishrahttp://www.blogger.com/profile/02134285310514456720noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-351054794391412317.post-18014938844104661962010-08-26T18:53:00.000-07:002010-08-26T18:54:17.309-07:00socha na thaमाँगा बहुत कुछ इस ज़िंदगी से<br />पर मिला वो ही जो माँगा ना था<br />किया बहुत कुछ ज़िंदगी में<br />मगर हुआ वही जो सोचा ना था<br /><br />अंधेरों में ऐसी रोशनी तलाशते रहे<br />चरागों से भी ज़िंदगी में उजाला ना हुआ<br />मुक्कदर ने ऐसी पीला दी शराब<br />की ज़िंदगी में नशा दोबारा ना हुआ<br /><br />हंस हंस के ज़ीन ज़ख़्मों को सहते रहे हम<br />उनको नासूर बनाने वाले का ठिकाना ना रहा<br />जिस कश्ती की तलाश में निकले थे हम<br />कश्ती तो मिली पर किनारा ना रहाNitesh Mishrahttp://www.blogger.com/profile/02134285310514456720noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-351054794391412317.post-39486478706119096852010-08-07T16:08:00.000-07:002010-08-07T16:10:05.936-07:00Bewafa na samajhमेरी मोहब्बत को इतना कमजोर ना समझ<br />मेरे जसबातों को इतना खोखला ना समझ<br />लड़ कर भी तूफ़ानो से निकाला है इस कास्ती को<br />प्यार के नाम पर इसे मेहरबानी ना समझ<br /><br />तेरे चले जाने से मंज़र जो तूफान का उठा<br />उसको इस डूबते हुए का किनारा ना समझ<br />तेरी आँखों में माना नशा बहुत था<br />पर उनसे ना पी पाने को मेरी कमज़ोरी ना समझ<br /><br />पत्थर बन गयी है मेरी आँखें<br />अब इनसे गिरने वाले आँसुओं को मोती ना समझ<br />मेरी बेबाक मोहब्बत को मेरी बेवफाई का नाम देकर<br />कम से कम इस आशिक़ को बेवफा ना समझNitesh Mishrahttp://www.blogger.com/profile/02134285310514456720noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-351054794391412317.post-24411323163598864342010-07-28T05:55:00.000-07:002010-07-28T05:56:27.172-07:00ishq bewajah kiya tha kya maineआज कल जब भी बंद करता हूँ मैं आँखें<br />तेरा ही चेहरा सामने आ जाता है ,<br />इश्क़ बेवजह किया था क्या मैने<br />इस ख़याल से दिल दहल जाता है<br />तुझे पाने के लिए क्या ना किया मैने<br />कितने रिश्ते तोड़े इस एक रिश्ते को बनाने के लिए<br />पर आज खुद को अकेला देखकर<br />मॅन खिन्न सा हो जाता है<br />इश्क़ बेवजह किया था क्या मैने<br />इस ख़याल से दिल दहल जाता है<br />तेरी हर याद मुझको इस कदर जला रही है<br />की अब उस रख को स्याही बनाकर<br />अपनी मोहब्बत की दास्तान लिख रहा हूँ<br />टूटी कलाम को साथी बना लिया है मैने<br />अब तो मौत ही अंत करेगी इस किस्से का<br />इस ख़याल से ज़िंदगी के बचे पल गुज़ार रहा हूँ<br />इश्क़ बेवजह किया था क्या मैने<br />इसका फ़ैसला आपके हाथ में छोढ़ कर जा रहा हूँNitesh Mishrahttp://www.blogger.com/profile/02134285310514456720noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-351054794391412317.post-86255944844136248202010-04-27T15:10:00.000-07:002010-04-27T15:30:53.694-07:00FOR THOSE WHO ALWAYS WANT TO FALL IN LOVEयह कुछ शेर उन लोगों के लिए जो आशिक़ है या आशिक़ी में धोखा खाए हुए है<br /><br /><br />मेरा मॅन भी कायल है इन्ही मदहोश आँखों का<br />लूट गये ही सबके सब<br />मगर बाकी अभी हम है<br /><br /><br />तेरी जुल्फो के साए में यूँ डूब जाए हम<br />की जैसे ग्रहित सूरज का बाकी निशान ना हो<br /><br /><br />काई आशिक़ है यहाँ कितनो का दिल टूटा होगा<br />ज़िंदगी के दो रहे पर किसी से किसी का साथ तो छूटा होगा<br /><br />ज़ालिम ज़माने को मत कह इसने क्या ना दिया तुझको<br />ज़ालिम तो वो आँखें है जो खड़ी देख रही बर्बाद होते तुझको<br /><br /><br />गम इतना मिला की आँखों में आसून ना रहे<br />कॉसिश बहुत की पर दिल को रोने से ना रोक सके<br /><br /><br />यह पंक्तियाँ उनके लिए जो किसी भी बात को लेकर निराश हो जाते है<br /><br />"जब खवाब ही संजोए थे मिट्टी क पुतलों के<br />तो बारिश तो एक दिन होनी ही थी"Nitesh Mishrahttp://www.blogger.com/profile/02134285310514456720noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-351054794391412317.post-6622713745375281032010-03-21T03:26:00.000-07:002010-03-21T03:38:46.339-07:00ज़िंदगी के किस मोड़ पर खड़े हैआज जीवन के उस मोड़ पर खड़े है<br />हर आस को छोढ़ कर खड़े है<br />ना हम अपनो से लड़ पाए ना दूसरों से<br />सफलता की होड़ में सब छोढ़ कर खड़े है<br /><br />कितने हुए सफल यह जानते है हम<br />सफलता के सारे बंधानो को तोड़ कर खड़े है<br />शब्दों के इस जाल से सच्चाई चुप नही सकती<br />इसलिए इनसे सच्चाई को जोड़ने चले है<br /><br />क्या कब हुआ यह सोच ना पाए हम<br />हाल यह है की अब ज़िंदगी से रिश्ता तोड़ कर खड़े है<br />जो खुद के सपनो को सच ना कर पाए<br />उस कायर की भाँति<br />हम अपने सपनो को तोड़ कर खड़े है<br />ज़रा देखिए तो हम किस मोड़ पर खड़े हैNitesh Mishrahttp://www.blogger.com/profile/02134285310514456720noreply@blogger.com19